1853 ई. का चार्टर अधिनियम



1853 ई. का चार्टर अधिनियम



1853 ई. के चार्टर अधिनियम ने कंपनी को, क्राउन के प्रति निष्ठा बनाये रखते हुए, भारत स्थित अपने क्षेत्रों को बनाये रखने और राजस्व के अधिकार प्रदान कर दिए| ये अधिकार पूर्व के चार्टर अधिनियमों के समान किसी निश्चित समयसीमा में बंधे नहीं थे बल्कि तब तक के लिए प्रदान कर दिए गए जब तक ब्रिटिश संसद अन्यथा निर्देश न दे| 1853 ई. का चार्टर एक्ट, 1852 ई.  की सेलेक्ट कमेटी की जाँच रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया था| राजा राममोहन राय की इंलैंड यात्रा  और बॉम्बे एसोसिएशन व मद्रास नेटिव एसोसिएशन की याचिकाओं का परिणाम 1853 ई. का चार्टर एक्ट था|


अधिनियम की विशेषताएं


• इस अधिनियम द्वारा शासन की संसदीय प्रणाली, जैसे –कार्यपालिका व विधानपरिषद ,के विचार को प्रस्तुत किया गया जिसमे विधानपरिषद ब्रिटिश संसदीय मॉडल के अनुसार कार्य करती थी|


• इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को अनिश्चितकाल के लिए नवीनीकृत कर दिया|


• इसने नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी जिनमें से  6 सदस्य नामनिर्देशित होते थे|


•  गवर्नर जनरल की परिषद् के चौथे सदस्य की स्थिति भी बाकी  सदस्यों के समान हो गयी क्योकि उसे भी मत देने का अधिकार प्रदान कर दिया गया| बाद में शामिल किये गए छह सदस्यों को ‘विधान परिषद् के सदस्य’ कहा गया| अतः इस अधिनियम के लागू होने के बाद  गवर्नर जनरल  की सहायता छह विधान परिषद् के सदस्यों ,चार गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों और एक सेनापति द्वारा की जाती थी|


• इस अधिनियम में भारतीय सिविल सेवा के सदस्यों की नियुक्ति खुली प्रतिस्पर्धा द्वारा करने का प्रावधान भी शामिल था| मैकाले को समिति का अध्यक्ष बनाया गया |


• इस अधिनियम द्वारा भारतीय (केंद्रीय) विधान परिषद् में सर्वप्रथम क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया|गवर्नर जनरल की परिषद् में मद्रास,बॉम्बे, बंगाल और आगरा की स्थानीय (प्रांतीय) सरकारों द्वारा छह नए विधान परिषद् के सदस्य नियुक्त किये गए|


• सर्वप्रथम इसी अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद के कार्यपालिका व विधायी कार्यों को अलग किया गया|


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