कार्यालयीन हिंदी : स्वरूप एवं प्रयोग
दिनांक 26 जनवरी 1950 ई० को भारत एक गणतन्त्र देश बना । किसी भी स्वतंत्र देश की आधिकारी राष्ट्रभाषा उसके मान और गौरव को बढ़ाती है । भारत के संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 120,210 एवं 343 से 351 तक संघ की भाषा एवं इसके विभिन्न प्रावधानों के बारे में चर्चा की गयी है ।इन उपबंधों के आधार पर संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रयोग को मान्यता दी गयी है । गृह मंत्रालय की दि. 27 अप्रैल, 1960 ई० की अधिसूचना संख्या 2/8/60-रा.भा., की अधिसूचना के आधार पर राष्ट्रपति का आदेश आम जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया जिसमें लोकसभा के 20 सदस्यों और राज्य सभा के 10 सदस्यों की एक समिति प्रथम-राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर विचार करने लिए और उनके विषय में अपनी राय राष्ट्रपति के समक्ष पेश करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 344 के खंड (4) के उपबंधों के अनुसार नियुक्त की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष 8 फरवरी, 1959 को पेश कर दी। इन रिपोर्टों के आधार पर देश की राजभाषा के रूप में हिन्दी को प्रतिष्ठित किया गया । तदनुसार 1963 ई० में राजभाषा अधिनियम बना जिसे बाद में संशोधित रूप में पुनः 1967 ई० में प्रकाशित किया गया । राजभाषा संकल्प 1968 ई० एवं राजभाषा नियम 1976 ई० का निर्माण हुआ । इन नियमों एवं अधिनियम के निर्माण का मुख्य उद्देश्य देश की राजभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता एवं इसके क्रियान्वयन के लिए विभिन्न उपबंधों एवं उपायों का समावेश करना था । कतिपय कारणों से हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में अबतक मान्यता नहीं मिल सकी है पर राजभाषा के रूप में समस्त सरकारी कामकाज में विशेषकर केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में इसके प्रयोग पर बल दिया जाता है तथा यह अपेक्षा की जाती है कि इसके प्रयोग,प्रचार एवं प्रसार के लिए समस्त कर्मचारी प्रयास करेंगे।
भाषाई आधार पर राज्यों का विभाजन : कार्यान्वयन में सुविधा की दृष्टि से भाषाई आधार पर भारत को क्रमशः ‘क’, ‘ख’ एवं ‘ग’ तीन भागों में विभाजित किया गया है । ‘क’ क्षेत्र के राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित क्षेत्र दिल्ली तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह आते हैं । ‘ख’ क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा चंडीगढ़, दमण और दीव तथा दादरा और नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र हैं तथा उपरोक्त ‘क’ तथा ‘ख’ क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य सभी राज्य ‘ग’ क्षेत्र में आते हैं । सरकारी कार्यों के लिए पत्राचार हेतु इन राज्यों में विभिन्न लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं । इन लक्ष्यों के आधार पर यह अपेक्षित है कि ‘क’ एवं ‘ख’ क्षेत्र के राज्यों के केंद्रीय सरकार के कार्यालय आपस में जो भी पत्राचार करें वह शत प्रतिशत हिन्दी में किया जाए तथा ‘ग’ क्षेत्र के कार्यालयों के लिए यह लक्ष्य 60 प्रतिशत पत्राचार का है । ‘क’ क्षेत्र के कार्यालयों से ‘ग’ क्षेत्र के कार्यालयों को भेजे जाने वाले पत्र हिन्दी में हो सकता है पर यह अपेक्षा की जाती है कि उनका अंग्रेजी अनुवाद भी साथ में भेजा जाए ।
सरकारी कार्यालयों में पत्राचार का स्वरूप : केंद्रीय सरकार के सरकारी कार्यालयों में विभिन्न स्तरों पर पत्राचार हेतु विभिन्न स्वरूप प्रचलन में हैं । किसी कार्यालय में कार्यालय के कार्मिकों को कोई जानकारी देने के उद्देश्य से जारी किए जाने वाले पत्र को परिपत्र(circular) कहा जाता है । किसी एक शाखा से दूसरी शाखा से पत्राचार के लिए प्रयुक्त स्वरूप को अनौपचारिक टिप्पणी कहा जाता है । एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में भेजा जाने वाला पत्र कार्यालयीन पत्र कहा जाता है । इसके अतिरिक्त किसी कर्मचारी को यदि कोई विशेष प्रकार का अनुदेश दिया जाना हो तो उसे ज्ञापन के रूप में निकाला जाता है जो व्यक्ति विशेष को संबोधित होता है । इन समस्त पत्रों का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न होता हैं । भारत सरकार के राजभाषा अधिनियम 1963 के धारा 3(3) के अनुसार पत्राचार के कुल 14 ऐसे स्वरूप हैं जिन्हें आवश्यक रूप से द्विभाषी रूप में जारी किया जाना अपेक्षित है । वे कागजात हैं -1.सामान्य आदेश 2.संकल्प 3.नियम 4.प्रेस विज्ञप्ति 5.अधिसूचना 6. प्रशासनिक एवं अन्य रिपोर्ट 7. सूचना 8. निविदा प्रारूप 9. संविदा 10. करार 11.अनुज्ञप्ति 12.अनुज्ञापत्र 13.संसद में प्रस्तुति हेतु प्रशासनिक एवं अन्य रिपोर्ट एवं 14.संसद में प्रस्तुति हेतु शासकीय कागजात। ऐसे कागजात को मात्र अंग्रेजी में जारी करना राजभाषा अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन माना जाता है । किसी भी कार्यालय में राजभाषा अधिनियम के उपबंधों के अनुपालन की ज़िम्मेदारी कार्यालय प्रमुख की होती है । कतिपय मामलों में राजभाषा अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन हर हाल में सुनिश्चित करना अपेक्षित है । इसके अतिरिक्त यह भी अपेक्षित है कि हिन्दी में प्राप्त पत्रों का उत्तर हिन्दी में ही दिया जाए ।
राजभाषा अधिनियम के उपबंधों का कार्यान्वयन एवं उसका प्रचार प्रसार : राजभाषा अधिनियम के लागू होने तक या इसके कार्यान्वयन के लिए बनाए गए उपबंधों में यह भी उल्लेख है कि हिन्दी के साथ साथ सह भाषा के रूप में अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा । इस प्रावधान के कारण अधिकांशतः सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का कम प्रयोग हुआ तथा अंग्रेजी का प्रचलन बदस्तूर जारी रहा। सरकारी कार्यालयों में नौकरी पर नियुक्त होने वाले कार्मिकों को काम करने के लिए अलग से कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है । उन्हें मात्र परिवीक्षा पर कुछ समय के लिए रखा जाता है । अब जब काम करने की आवश्यकता पड़ी तो अधिकांश कर्मचारी फाइलों में पड़े पूर्व के संदर्भों को देखते हुए उसी के समरूप पत्राचार का प्रयास करते गए । चूंकि प्रत्येक सरकारी विभाग के फाइलों में अधिकांश पत्राचार अंग्रेजी में होने के कारण कार्मिक अंग्रेजी के पत्राचार को ही पराश्रय देते चले गए । सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कार्यान्वयन में यह काफी बाधक है । हिन्दी का ज्ञान रखने वाले कार्मिकों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है । मैट्रिक या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर परीक्षा हिंदी के साथ उत्तीर्ण कार्मिक को हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कार्मिक माना जाता है । विभिन्न स्तरों पर हिन्दी का प्रशिक्षण देने के लिए भारत सरकार द्वारा कार्मिकों को हिन्दी का प्रशिक्षण दिया जाता है । हालांकि हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर विभिन्न उपाय किया जाता है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण का आयोजन तथा उन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम को पास करने पर वेतन वृद्धि एवं एक मुश्त नकद पुरस्कार का प्रावधान,हिन्दी में कार्य करने पर कैलेंडर वर्ष एवं वित्त वर्ष की समाप्ति पर नकद पुरस्कार का प्रावधान किया गया है । इन प्रयासों के अतिरिक्त सरकारी कार्यालयों में राजभाषा अनुभाग द्वारा त्रैमासिक प्रशिक्षण का आयोजन तथा हिन्दी कार्यान्वयन की प्रगति की देख-रेख के लिए कार्यालय प्रमुख की अध्यक्षता में तिमाही बैठक का आयोजन किया जाता है ।
कार्यालयीन हिन्दी का स्वरूप : भाषा का मुख्य उद्देश्य है अपनी बात सामने वाले से या जिसके लिए प्रयुक्त हो उसे आसानी से समझाई जा सके वह आसानी से ग्राह्य हो । समस्त उपबंधों के होते हुए भी आम लोगों में यह धारणा है कि हिन्दी का प्रयोग कठिन होगा क्योंकि साहित्यिक हिन्दी अपेक्षाकृत कठिन होता है और यदि इस हिन्दी का प्रयोग आम पत्राचार में किया जाए तो हास्यास्पद या समझने में कठिनाई आएगी । शायद इसी भ्रम के आकरण लोग हिन्दी को अपनाने से कतराते हैं । इस समस्या के निजात के लिए भारत सरकार, राजभाषा विभाग द्वारा आसान हिन्दी के प्रयोग पर बल दिया जाता है । आसान हिन्दी का अर्थ है स्थानीय एवं आम बोलचाल कि भाषा का प्रयोग सरकारी कार्यों के लिए किया जाए । इस प्रकार से हिन्दी का प्रचलन बढ़ेगा । चूंकि हमारा देश विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों से युक्त है अतः आसान हिन्दी समझ पाना सबके लिए आसान होगा तथा क्षेत्र विशेष के प्रचलित शब्दों के प्रयोग से भाषा की धारा भी सुचारु रूप से चलती रहेगी तथा इससे हिन्दी का प्रयोग भी बढ़ेगा । आम तौर पर देखा गया है कि आसान शब्दों को ग्रहण करने में जितनी आसानी होगी उतनी ही कठिनाई एवं भारी भरकम शब्दों के साथ आएगी । जिन सरकारी कार्यालयों में इस विधि का अनुसरण किया गया वहाँ हिन्दी का प्रचार प्रसार अपेक्षाकृत अधिक ही हुआ । उदाहरणस्वरूप अंग्रेजी का शब्द approval के लिए हिन्दी के कई विकल्पों का प्रयोग किए जा सकते हैं जो अनुमोदन, संस्तुति आदि हो सकता है । यह भी प्रावधान किया गया कि यदि कोई कार्मिक हिन्दी लिखने में वर्तनी संबन्धित यदि कोई त्रुटि भी करता है तो उसे इस बात के लिए हतोत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित किया जाए कि उसने हिन्दी में लिखने का प्रयास तो प्रारम्भ किया ।
कई बार ऐसा देखा गया ही कि अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों को हिन्दी में अनूदित करवाने की आवश्यकता पड़ जाती है । अनुवाद करते समय अधिकांशतः लोग शब्दानुवाद का प्रयास करते हैं । शब्दानुवाद कुछ हद तक तो ठीक है पर जब हम यह अनुवाद आसानी से भाषा के कथ्य को समझने के लिए करते हैं तो कहीं कहीं शब्दानुवाद के कारण उस विषय का मूल अर्थ भारी और उबाऊ होने के साथ समझ से परे हो जाता है । ऐसे में यह सलाह दी जाती है कि भावानुवाद किया जाए तथा दिये गए अंग्रेजी पाठ के मूल कथ्य को प्रदर्शित किया जाए ताकि उसे समझने में आसानी हो तथा उसके अनुरूप पत्राचार किया जा सके । सरकारी कामकाज में पहले देखा गया है कि अंग्रेजी के कुछ ऐसे वाक्य होते हैं जिनका हिन्दी अनुवाद बड़ा ही कठिन लगता है या हिन्दी में उन शब्दों या वाक्यों का प्रयोग करना बड़ा ही अटपटा लगता है जैसे I am directed to say /I am directed to forward… ऐसा माना जाता है कि पत्र जारी करने वाला अधिकारी अपने से कुछ नहीं कर रहा है । वह सरकार के अनुदेश पर समस्त कार्य करता है इसी लिए हमेशा पत्राचार में यह वाक्य प्रयोग किया जाता है । इनका हिन्दी में अनुवाद मुझे यह कहने का निदेश हुआ है/मुझे.... अग्रेषित करने का निदेश हुआ है । अंग्रेजी के पत्र में सम्बोधन के लिए Dear Sir का प्रयोग होता है पर हिन्दी में महोदय लिखा जाता है । अंग्रेजी पत्राचार में Yours faithfully, लिखा जाता है पर इसके हिन्दी रूपमें आपका विश्वासी लिखना कतई उपयुक्त नहीं होगा । इसके स्थान पर हम भवदीय लिखते हैं ।
कार्यालयों में आम पत्राचार के अतिरिक्त एक और चीज प्रचलन में है जिसे नोटिंग कहा जाता है। सरकारी कार्यालयों में कोई भी कार्य बिना फाइल पर टिप्पणी के नहीं की जा सकती । कार्य करने वाला सहायक कोई भी बात या अपने उच्चाधिकारी को फाइल पर नोट के रूप में लिखकर करता है । इसे अंग्रेजी में नोटिंग(Noting) कहा जाता है । उसकी बात पर उच्चाधिकारी द्वारा तदनुसार कार्य करने का अनुदेश दिया जाता है । कार्यालय के पत्राचार का यह प्रथम सोपान होता है । अंग्रेजी में लिखे जाने वाले नोट अमूमन passive voice, third person के रूप में लिखे जाते हैं पर हिन्दी में सीधे सपाट शब्दों में तथा आसान वाक्यों में लिखने पर बल दिया जाता है । उदाहरण के लिए नोट शीट में किसी बात को प्रस्तुत करने के लिए अंग्रेजी में Submitted please लिखकर शुरुवात की जात है हेसे मान लीजिये कार्यालय में दो कार्मिकों की कमी है । इस कमी को दूर करने के लिए मुख्यालय से दो कार्मिकों की मांग की जानी है । इसके लिए कार्य करने वाला सहायक फाइल में कुछ इस प्रकार से नोट प्रस्तुत करेगा :-
Submitted please
There is an acute shortage of staff in this office. To fill the deficiency HQ office may be requested to transfer two staff.
Submitted for your approval please.
इसे हिन्दी में प्रस्तुत करने के लिए निम्नलिखित रूप से लिखा जा सकता है :-
प्रस्तुत/प्रस्तुति
हमारे कार्यालय में कार्मिकों की भारी कमी है । इस कमी को दूर करने के लिए मुख्या से दो कार्मिकों की तैनाती के लिए निवेदन किया जा सकता है ।
अनुमोदनार्थ/अनुमोदन हेतु प्रस्तुत ।
अंग्रेजी के वाक्यांश में यदि हम देखें तो please शब्द का खूब प्रयोग होता है । पर यह माना जाता है कि प्रशासनिक कार्यों में भावना का स्थान नहीं होता है अतः ऐसे शब्दों का पत्राचाट में प्रयोग न किया जाए । सीधे एवं सपाट शब्दों में अपनी बात कही जाए। तदनुसात उच्च अधिकारी द्वारा भी तदनुसार अपनी टिप्पणी दी जाती है ।
नोटिंग के बाद ड्राफ्टिंग का क्रम आता है । ड्राफ्टिंग का अर्थ है किसी भी पत्र या विवरण का मसौदा तैयार करना । कोई भी पत्र या पत्राचार के लिए विवरण पहले उच्चाधिकारी द्वारा अनुमोदन करवाना आवश्यक होता है । इसके लिए सहायक द्वारा लिखा जाने वाला समस्त विवरण पत्र/ज्ञापन/परिपत्र के रूप में मसौदा उच्चाधिकारी के पास प्रस्तुत किया जाता है । उच्चाधिकारी द्वारा उक्त विवरण का अवलोकन करने के बाद उसमें या तो संशोधन का सुझाव दिया जाता है या फिर उसका अनुमोदन कर दिया जाता है । तदनुसार पत्र के अंतिम स्वरूप को अधिकारी द्वारा हस्तक्षार करने के बाद कार्मिक द्वारा जारी कर दिया जाता है ।
कार्यालयीन हिन्दी एवं अंग्रेजी में यदि हम अंतर देखें का प्रयास करें तो सदा यह सलाह दी जाती है कि आसान हिन्दी का प्रयोग करें । इसके लिए आपके मन में जो विचार आता है, या जो कहा जाना है उसे साफ एवं स्पष्ट शब्दों में प्रस्तुत करें । राजभाषा अधिनिय के उपबंधों के अनुसार हिन्दी में प्रस्तुत किए गए मसौदे या नोट के लिए कोई भी अधिकारी उसके अंग्रेजी अनुवाद की मांग नहीं कर सकता है । चूंकि बहुत कम लोग ही सीधे अंग्रेजी में सोचकर अपनी बात अंग्रेजी में ही लिख पाने में समर्थ होते हैं, अधिकांशतः आम भारतीय कोई भी बात अंग्रेजी में लिखने से पूर्व अपने मातृभाषा में सोचता है फिर उन शब्दों या वाक्यों को मन ही मन अंग्रेजी में अनूदित करने का प्रयास करता है । अब अनुवाद की प्रक्रिया में हमेशा व्याकरणिक शुद्धियों का ध्यान रखना पड़ता है । यदि थोड़ी सी अशुद्धि हो जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाने का अंदेशा रहता है । अंग्रेजी लिखने के इस प्रयास में अत्यधिक मानसिक श्रम करना पड़ता है । इसके इतर यदि हम हिन्दी में लिखने का प्रयास करते हैं तो हमें अधिक श्रम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है । हिन्दी में लिखने का सबसे बड़ा फाइदा यही है कि वाक्य संरचना में शब्दों की क्रम यदि आगे पीछे भी हो जाए तो वाक्य का अर्थ नहीं बदलता है । और फिर अपनी भाषा में अपनी बात कहना अधिक आसान होता है । हिन्दीतर भाषाई क्षेत्र के लोगों के लिए भी अपने मातृभाषा से अंग्रेजी की बजाय हिन्दी में कोई बात अनूदित कर कहना अत्यधिक आसान होता है । ऐसे में हिन्दी में सरकारी काम अत्यधिक आसान होता है । बस मन का डर दूर कर प्रयास करने की आवश्यकता है ।
0 Comments